अगर भारत के कुछ कद्दावर नेताओं की बात की जाये तो निःसंदेह ही नितीश कुमार इनमें अपना स्थान रखते हैं। बिहार की क्षेत्रीय पार्टी जदयू में भी सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित हैं। 64 वर्षीय नीतीश की छवि बिहार में सुशाशन बाबू के रूप में मशहूर है। हो भी क्यों ना पांच बार बिहार के मुख्यमंत्री जो रह चुके हैं।अपने तात्कालिक कार्यकाल में शराब बंदी के को लेकर काफी सुर्खियां भी बटोरे। हालाँकि इन सब से बिहार की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। अशिक्षा, बेरोजगारी और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं बिहार में जस की तस बनी हुयी हैं।अभी बिहार फिर से चर्चा में हैं वो भी मासूम बच्चों की मौत को लेकर। ज्ञात हो कि इस समय बिहार के कई जिलों में 'इंसेफलाइटिस' यानि कि चमकी बुखार का कहर छोटे बच्चों पर जारी है। आंकड़ों की मानें तो इस साल इस बुखार में अब तक 120 से ज्यादा बच्चों ने अपनी जानें गंवई हैं।
क्या है यह बुखार - डॉक्टर्स के अनुसार 'अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम' ( AES ) खास तौर पर बच्चों को अपनी गिरफ्त में लेता है। इस बीमारी की वजह से नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र बुरी तरह से प्रभावित होता है। शुरुआत में इस बीमारी में तेज बुखार और शरीर में ऐंठन होता है। समस्या बढ़ने पर बेहोशी के दौरे पड़ने के साथ ही बच्चे कोमा में जा सकते हैं और सही समय से इलाज नहीं हुआ तो मौत भी हो सकती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार इसके चपेट में- उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही पड़ोसी राज्य इस बीमारी के चपेट में हैं।
दो साल पहले गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में इसी समस्या के चलते 60 बच्चों ने अपनी जान गंवा दी थी। हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार ने समय रहते इस समस्या से सम्बंधित टिके और इलाज से इस पर नियंत्रण पा लिया है लेकिन बिहार में लगभग हर साल इस बुखार से सैकड़ों मासूम बच्चों की जान चली जाती है। इन सब बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब हर साल यह बीमारी जून से अक्टूबर के बीच कहर बरपाती है तो इसको लेकर सरकार पहले से तैयारियां क्यों नहीं करती?। इस समय अस्पतालों की हालत यह है कि ना भरपूर दवाईयां हैं ना ही डॉक्टर। वहीँ एक बेड पर दो -दो मरीजों को सुलाया गया है। ऐसे में बिहार सरकार पर सवाल क्यों ना उठाया जाये?
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Encephalitis Patent in Muzaffarpur (Pic: inkhabar) |
कहाँ चूक जा रहे हैं नितीश कुमार?- ऐसा नहीं है कि नितीश कुमार कुछ काम नहीं कर रहे हैं। इनके द्वारा लगाए शराब बंदी की चारों तरफ तारीफें हुईं। इतना ही नहीं 'कौशल विकास मिशन' द्वारा 1 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षण देने का निर्णय भी कबीले तारीफ है। अभी हाल ही में बुजुर्ग माता -पिता की अनदेखी पर बेटा और बेटी दोनों को सजा के निर्णय का भी स्वागत होना चाहिए। मगर इस ऐलान से पहले अहम् मुद्दा बिहार में रोजगार का होना चाहिए। बिहारियों का दूसरे राज्यों में पालयन किसी से छुपा नहीं है। पलायन भी इसलिए क्यों में बिहार में रोजगार ना के बराबर है। और रोजी-रोटी के चक्कर में युवा अपना घर अपने माता -पिता को छोड़ दूसरे राज्यों में रहने को मजबूर हैं। अब जब कोई अपने घर में रहेगा ही नहीं तो माता -पिता की सेवा किस प्रकार से कर पायेगा। वहीं बिहार के बुजुर्ग अपने कलेजे पर पत्थर रखकर अपने बेटों को अपने से दूर रखने को मजबूर हैं, क्योंकि वो जानते हैं कि यहाँ रहने पर बच्चों की जिंदगी नहीं चल पायेगी ऐसे में वो अपनी सेवा के लिए अपने बच्चों का भविष्य ख़राब कभी नहीं करना चाहेंगे। तो फिर इस तरह की योजना का कोई दूरगामी परिणाम नहीं दीखता है। वहीं मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते जो कमाने वाले या पैसे वाले लोग हैं वो भी बिहार में नहीं रहना चाहते हैं। ऊपर से गुंडागर्दी, माफियाओं का कहर इस राज्य को और अधिक पीछे धकेलता जा रहा है।
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Encephalitis Patent In Muzaffarpur(Pic: gaonconnection) |
हालाँकि इन समस्याओं का निदान एक दिन में संभव नहीं है क्यों की ये समस्याएं बिहार में सालों से जड़ जमाये हुए हैं लेकिन इस दिशा में सार्थक कदम उठाने पर निश्चित रूप से बड़ा परिवर्तन होता दिखाई देगा। नितीश कुमार जैसे सक्षम नेता से इतनी उम्मीद तो बनती है।
विंध्यवासिनी सिंह
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