नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस प्रकार व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके उद्यापन कर देना चाहिए।
करवा चौथ व्रत पूजन विधि (Karvachauth Vrat Pooja Vidhi)
इस व्रत में पीसी हुई चावल के घोल से दीवाल पर सबसे ऊपर चन्द्रमा बनते हैं उसके नीचे शिव, गणपति और कार्तिकेय का चित्र बनाया जाता है. फिर पीली मिट्टी से गौरी बनायी जाती है जिनकी गोद में गणपति को बैठाया जाता है. गौरी को चौकी पर बिठाकर सभी सुहाग चिन्हों से उन्हें सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है.
पूजा की समग्रियां व विधान इस प्रकार है: महिलाएं आठ पूरियों की अठावरी बनाती हैं. पूए और हलवा बनाती हैं. पूजा के लिए जल पूरित यानी पानी से भरा हुआ लोटा रखा जाता है. भेंट देने के लिए करवा (मिट्टी का बना एक प्रकार का लोटा) होता है जिसमें गेंहूं भरा होता है और उसके ऊपर रखे ढ़क्कन में शक्कर का बूरा, दक्षिणा और बिन्दी रखी जाती है. करवे पर सुहागिन स्त्रियां स्वास्तिक चिन्ह बनाती हैं. पूजा के पश्चात हाथ में 13 दाने गेंहूं के लेकर कथा कही और सुनी जाती है. कथा के बाद अपनी सासु मां व घ्रर की अन्य बड़ी सुहागन स्त्रियों से आशीर्वाद लिया जाता है व करवा सासु मां को दिया जाता है.
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